Thursday, November 25, 2010

आत्म शक्ति का निश्चय ठाने

आत्म शक्ति का निश्चय ठाने,
पड़ी हुई लुटी शिकार को सिंह नहीं हे खाने जाते,
एक हाथ में सृजन दुसरे में प्रलय लिए चलते हे,
सभी कीर्ति ज्वाला में जलते हम अंधियारे में जलते हे,
हाथों में वैभव के सपने, पग में तूफानों की गति हों
राष्ट्र सिन्धु का ज्वार न रुकता, आये जिस जिसकी हिम्मत हो l

शुद्ध ह्रदय की प्याली में,
विश्वास दीप निष्कंप जला कर,
कोटि कोटि पग बढें जा रहे,
तिल तिल जीवन गला गला कर,
जब तक ध्येय न पूरा होगा,
तब तक पग की गति न रुकेगी
आज कहे चाहे जो दुनिया,
कल को झुके बिना न रहेगी l

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